Thursday, May 6, 2010

क्यों डॉलर का बुलबुला कभी भी फट सकता है ?

अभी तक अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में लगभग सारे कच्चे तेल की खरीदी बिक्री न्युयोर्क एवं लन्दन की तेल मंडी के जरिये डॉलर में होती रही है, ये दोनों ही एक्सचेंज अमेरिका के है. अमेरिका ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपने सहयोगी देशो को हथियार एवं खुराक भेजे .. बदले में मुद्रा की जगह सोना लिया, १९४५ में दुनिया का लगभग ८०% सोना अमेरिका की तिजोरियो में था, इसी वजह से डॉलर निर्विवादित रूप से दुनिया भर के देशो की रिसर्व मुद्रा बन गई, और सोने से ज्यादा भरोसेमंद मानी जाने लगी. तभी ब्रेटन वूड्स अग्रीमेंट का जन्म हुआ.

अमेरिका ने अगले दशक में इसका भरपूर फायदा उठाया और जबरदस्त डॉलर छापे और सारे दुसरे देशो को आयत की गई वस्तु के लिए बाट दिए. इससे घर में महंगाई नहीं बड़ी क्योकि सारे डॉलर बहार भेजे जा रहे थे, इस तरह अमेरिका का सारा आयत भी मुफ्त हो गया.. क्योकि डॉलर छापना तो अमेरिका के हाथ में ही था.
आने वाले दशको में दुनिया की तिजोरिय डॉलर से भरने लगी. अन्वेषक मानते है की अमेरिका को छोड़ कर दुनिया के बाकि देशो के कुल जमा मुद्रा का ६६% डॉलर ही था. १९७१ में कुछ देशो ने अमेरिका को अपने डॉलर सोने के बदले में वापस बेचने की कोशिश करी Krassimir Petrov, (Ph. D. in Economics at Ohio University ) लिखते है "अगस्त १५ १९७१ को सरकार ने अपने भुगतानों में घपला किया, वास्तव में सोने में डॉलर के भुगतान को मना करना सरकार का दिवालियापन है" ब्रेटन वूड्स अग्रीमेंट धराशायी हो गया.
अब अमेरिका के लिए विश्व के दुसरे देशो का कागची डॉलर में
भरोसा बनाये रखना जरुरी हो गया था, इसका उपाए था कच्चे तेल में.
अमेरिका ने कूटनीति के तहत पहले साउदी अरब फिर OPEC देशो को भरोसे में लेकर तेल की बिक्री डॉलर में चालू करवाई, यह काम कर गया और डॉलर फिर बच गया, अब दुनिया के देशो को तेल खरीदने के लिए डॉलर बचाए रखना जरुरी हो गया और अमेरिका मुफ्त में तेल खरीदने लगा.
तेल ने सोने का स्थान ले लिया.
१९७१ में अमेरिका ने और ज्यादा डॉलर छापने चालू कर दिए.
Cóilínn Nunan, लिखते है की दुनिया में डॉलर छद्म मुद्रा बन गयी यहाँ तक की इंटरनॅशनल मोनेटरी फंड भी सिर्फ डॉलर में ही उधार देने लगा.
Keele University के Dr Bulent Gukay लिखते है की दुनिया में डॉलर के कोष ने डॉलर की मांग को नकली रूप से उचा बनाये रखा इससे अमेरिका के लिया आयत मुफ्त हो गया, और जब तक दुनिया का भरोसा डॉलर में है तब तक ये व्यवस्था चलती रहेगी.
अभी डॉलर सुरक्षित था किन्तु १९९० में पश्चिम यूरोप की तरक्की ने मध्य और पूर्व यूरोप को निगल लिया, फ्रेंच और जर्मन, अमेरिका के इस मुफ्त के प्रभुत्व से खार खाए बैठे थे और उन्हें भी अपना हिस्सा चाहिय था. १९९९ में अमेरिका के विरोध (ब्रिटेन के जरिये) के बावजूद उन्हें यूरो मुद्रा लाने में कामयाबी मिल गयी.
यूरो के शुरुआत के एक महीने बाद ही सद्दाम के इराक ने OPEC अग्रीमेंट को धता बताते हुए डॉलर के बजाये यूरो में तेल बेचने की घोषणा कर दी
इरान, रशिया, वेनेजुएला, लीबिया सभी खुल कर यूरो में तेल बेचने का समर्थन करने लगे
तभी सितम्बर २००१ में अमेरिका के ट्विन टावर ध्वस्त हुए, क्या यह डॉलर को बचाने के लिए था ? २००० में इराक ने यूरो में तेल बेचना शुरू कर दिया, कुछ दिनों बाद अमेरिका ने इराक पर हमला कर दिया.
पूरी दुनिया देख रही थी अमेरिका ने २००३ में इराक पर हमले के बाद सबसे पहले वहा के तेल भण्डारो पर कब्ज़ा किया. अमेरिकी हमलो में सरकारी भवनों में सिर्फ तेल विभाग का ही भवन ध्वस्त नहीं हुआ.
२००३ में वेनेजुएला के राष्ट्रपति chavez ने आधा तेल यूरो में बेचने की
घोषणा की, १२ अप्रैल २००३ को chavez का अपहरण हो गया और कुछ अमेरिकी प्रायोजित नेताओ ने तख्तापलट की कोशिश की. भीड़ ने इसका विरोध किया और तख्तापलट नाकामयाब हो गया.
मई २००७ में इरान ने खुद का आयल एक्सचेंज बनाने की घोषणा की, इरान न सिर्फ अब यूरो में तेल बेचेगा बल्कि वह खुद का बाज़ार भी निर्मित कर रहा था. chavez ने खुल कर इरान के इस एक्सचेज का समर्थन किया और अमेरिका को कागज का शेर कह कर संबोधित किया.
फ़िलहाल लगभग पूरी दुनिया का तेल NYMEX न्युओर्क और IPE लन्दन से संचालित होता है. दोनों ही अमेरिका के अधीन है. इरान की तेल मंडी यूरोप के लिए फायेदा का सौदा है क्योकि वह इरान का ७०% तेल खरीदता है,
और रशिया के लिए भी क्योकि वह ६६% तेल यूरोप को बेचता है. पर यह अमेरिका के लिए भयावह था.
भारत और चीन पहले ही इरान को तेल मंडी का समर्थन कर चुके थे. अब यदि इरान में नाभिकीय हथियारों का डर होता तो कौन इस तरह उसका समर्थन करता. अब सभी दुनिया के लिए डॉलर के बजाये
यूरो का भंडार जरुरी हो जाता और यदि पूरी दुनिया का ५% भी डॉलर अमेरिक को वापस लेना पड़े तो उसकी अर्थव्यवस्था ख़त्म हो जाएगी.
अब अमेरिका के पास इरान पर हमले या फिर सुन्नी और शिया के दंगे करवा के इरान को उलझाने के आलावा कोई रास्ता नहीं बचता, हा या फिर वो डॉलर को ख़त्म कर के कोई नई मुद्रा शुरू कर दे इससे दुनिया भर की तिजोरियो में रखे ६६% डॉलर कचरा हो जायेंगे, या पूरी दुनिया को वापस एक विश्व युद्ध में झोंक कर अपने हथियारों को डॉलर के बदले बेचना चालू कर दे.

आज दुनिया में इस्लाम को बदनाम कर अमेरिका अपनी कूटनीति चल रहा है, उसके लिए लोगो की जान की कोई कीमत नहीं, आज कच्चे तेल की कीमतों में वृधि भी अमेरिका के सट्टेबाजो द्वारा की गई है क्योकि पहले जिस कच्चे तेल के लिए कम डॉलर खरचने पड़ते थे अब ज्यादा देने पड़ेंगे. वह अपने देश की अर्थव्यवस्था बचाने के लिए किसी भी हद तक जायेगा, हो सकता है, डॉलर का बुलबुला फटने से पहले कई देश अमेरिका द्वारा बर्बाद कर दिए जाए.

5 comments:

  1. अमेरिका का बर्बाद और तबाह होना समूची मानवता के लिए जरूरी है /क्योकि भ्रष्ट अमरीकियों ने पूरे विश्व को बर्बाद किया है, हाँ यहाँ मैं अमेरिका के इमानदार लोगों की सलामती की कामना जरूर करूंगा /

    ReplyDelete
  2. वाह भाई बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
    सही में डालर आज एक Shell Company का शेयर है जिसे buoyancy आक्सीज़न की तरह दी जा रही है. अभी 2 साल पहले जब ग्लोबल meltdown की शुरूआत हुई थी तो चीन को आपने यहां पड़े अमरीकी ट्रेज़री बांडों की चिंता होने लगी. जैसे ही अमारीका को भनक पड़ी कि कहीं चीन उनके भुगतान का तक़ाज़ा न कर बैठे, देख लीजिये तब से अमरीका चीन से अपने संबंध सुधारने को दुहरा हुआ जा रहा है... देखिये ये काठ की हांडी अभी कितने दिन और चलती है.

    ReplyDelete
  3. अरे वाह, बात ही बात में आपने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर दी। आभार।
    --------
    बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
    पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?

    ReplyDelete
  4. sir ..bade rochak andaaz mein gyaan diya :)

    ReplyDelete